गौमुत्र +आयुर्वेद = सरल-सस्ता-सुलभ स्वास्थ्य प्रबंधन
जाने कैसे गौमुत्र एवं गौ पंचगव्य से गाय, भेंस एवं अन्य पशुओं के विभिन्न रोगों मे स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करें सकते है?
परिचय
वर्तमान परिदृश्य में गौ पालन एवं पशु पालन के लिए स्थिति कठिन और गंभीर है | पहले के समय में, गाय, भैंस या अन्य पशु चरागाहों में ताजा और सात्विक घास के साथ जड़ी-बूटियां खाकर, उपयुक्त व्यायाम के साथ ऑक्सीजन युक्त ताजी हवा में घूमकर तरोताजा होकर घर वापस आती थी। तालाब और नदियों के शुद्ध पानी को पीने और स्नान करने से, जानवरों का स्वास्थ्य बरकरार रेहता था। पशुधन बहुत सारा सात्विक दूध देता था। इससे पशु पालक आर्थिक रूप से समृद्ध होते। इस वजह से देश सुखी और समृद्ध था।
वर्तमान परिस्थितियों में हमने औद्योगिक विकास के नाम पर चारागाहों और जंगलों को नष्ट कर दिया। इसके कारण गायों और मवेशियों ने चारागाहों में चरना बंद कर दिया। इस वजह से, हमने जानवरों को ताजा और परिष्कृत घास एवं औषधीय जड़ी-बूटियां खाने से वंचित कर दिया। चरागाहों में पूरे दिन घूमने पर जो व्यायाम होता था वह भी बंद हो गया। चारागाहों के विनाश से ज्यादातर पशुपालक अपने पशुओं को खुटे से बाँधकर रखते हैं जिससे उन का हिलना डुलना बंद हो गया। गौचरण में चरने से प्राप्त होने वाले पोषण का कोई विकल्प नहीं। व्यायाम बंद हो गया। पशु स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा है। जानवर कई बीमारियों से ग्रस्त हैं।
अधिकांश किसान जहरीले रासायनिक कीटनाशकों और सिंथेटिक उर्वरकों जैसे यूरिया, डीएपी का उपयोग करके अनाज की फसलें जैसे कि ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ के साथ-साथ रिजका, बरसीम जैसी अन्य घास चारे की फसल उगाते हैं। इस कारण से घास और अनाज जहरीला बन जाता है। इन्हें खाने से जानवर कई बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। इसके अलावा, खेतों में जहरीले कीटनाशकों और जहरीले खाद डालने पर जब बारिश या सिंचाई का पानी इनके ऊपर से बहता है तो वह इनको नदी, तालाब या कुएँ में ले जाता है और ऐसे प्रदूषित पानी को पीने से पशुओं में अनेक प्रकार की बीमारियाँ होती है।
पशुपालन में गौमुत्र एक सबसे प्रभावी और सटीक चिकित्सा पद्धति है। गौमुत्र (अर्क) को एक अमेरिका में शीर्ष वैज्ञानिकों द्वारा गहन अध्ययन और प्रयोगों द्वारा विश्व पेटेंट दिया गया है। उसका नंबर हैः- यू.एस. 2004/0248738ए1। गौमुत्र से कैंसर, एड्स, मधुमेह, ब्लड प्रेशर, सांस की बीमारियाँ, पाचन तंत्र के रोगों, मलाशय के रोगों, त्वचा रोगों जैसे 108 प्रकार के रोगों को समाप्त करता है। 21वीं शताब्दी में, पशु रोगों में गौमुत्र चिकित्सा अत्यंत उपयोगी और सटीक साबित हो रही है। साथ में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का उपयोग करने से न केवल पशु रोग मुक्त और दर्द मुक्त होता है बल्कि दूध भी अधिक देंगे। कम लागत पर, पशुपालक इससे आसानी से घर पर ही जानवरों को रोग मुक्त करके उन्हें स्वस्थ रखने में सक्षम होंगे।
एक गाय जब गौमुत्र करती है तब दूसरी गाय पी रही होती है। गौमुत्र पीना पशुधन के लिए एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। ऐसा हम अकसर देखते हैं। गौमुत्र पूरी तरह से प्राकृतिक, हानि रहित और आसानी से उपलब्ध है जो कई बीमारियों लाभकारी है। जिसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है।
वैज्ञानिकों के साथ-साथ पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों को गौमुत्र चिकित्सा पद्धति पर बड़ी मात्रा में गहन शोध की आवश्यकता है। इस विषय में बहुत शोध की गुंजाइश है। वैज्ञानिकों ने कई क्षेत्रों में गहन शोध करके कई प्रगति की है। लेकिन इस क्षेत्र में उतना व्यापक संशोधन नहीं हुआ जितना कि होना चाहिए।
देश के लगभग 500 जितनी गौशालाओं एवं पिंजरापोल की प्रत्यक्ष मुलाकात के आधार पर पशुओं के आरोग्य के संदर्भ में गहराई से अभ्यास किया गया और पाया गया कि पशुओं के स्वास्थ्य के संदर्भ में हमारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं है। स्वच्छता और पौष्टिक भोजन की कमी है।
ब्राजील और इजरायल जैसे देशों में भारत देश की देशी लाल गाय औसतन 60 लीटर से भी ज्यादा दूध देती है और हमारे यहां औसतन एक लिटर से भी कम दूध देती है। हम स्वच्छता, भोजन, पानी, बीमारी और कई अन्य चीजों पर बहुत कम ध्यान देते हैं। परिणामस्वरूप, पशुओं में बीमारियों और मौतों का प्रचलन बहुत अधिक है। अगर हम गो पालन, पशु पालन को वैदिक एवं वैज्ञानिक पद्धति से अपनाते हैं, तो हमारे देश में भी दूध का उत्पादन बढ़ा सकते हैं।
यदि गो पालक, पशु पालक इस गौमुत्र और आयुर्वेदिक उपचार पद्धति को अपनाने के लिए गंभीर प्रयास करते हैं, तो पशु आपको बीमारियों, दर्द और पीड़ा से छुटकारा पाकर आशीर्वाद देंगे।
कोर्स से लाभ
इस कोर्स के द्वारा गो पालन एवं डेयरी उद्योग से जुड़े व्यक्ति गौमुत्र एवं आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का बहुत ही सरल और सुलभ उपयोग कैसे कर सकते हैं उसकी जानकारी प्राप्त होगी।
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