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कीड़े जानवरों के पेट और आंतों में पैदा होते हैं। ये कीड़े आकार में छह इंच से लेकर एक फुट तक लंबे हो सकते हैं। वे पेट का ज्यादातर भोजन खा जाते हैं। खून भी पीते हैं। इस वजह से, जानवर दुबले और कमजोर हो जाते हैं। वजन कम हो जाता है। उनकी पसलियाँ दिखाई देने लगती हैं। जानवर कंकाल की तरह दिखता है। कीड़े उसके दस्त में भी जीवित या मृत दिखाई देते हैं। कृमि चपटे और भूरे रंग के केंचुए जैसे दिखाई देते है।
छोटे बच्चों में यह रोग व्यापक रूप से देखा जाता है। उसके पेट में काफी मात्रा में कृमि उत्पन्न होते है। इससे उसके शरीर का विकास रुक जाता है। इसके कारण वह बीमार और काफी परेशान रहते है। यह स्थिति बहुत कष्टप्रद होती है। पशुओं के पेट में दर्द रहता है। कृमियों द्वारा पीड़ित होने से, पशुओं का दूध उत्पादन काफी हद तक कम हो जाता है। यदि ठीक से इलाज न किया जाए तो छोटे जानवर मर भी सकते हैं।
दूषित, बैक्टीरिया युक्त गंदा पानी पीने से या गंदी, सड़ी हुई, फंगस लगी हुई घास खाने से कृमि होने की सम्भावना बढ़ जाती हैं। कृमि होने के फल स्वरूप पाचन क्रिया मंद पड़ जाती है, साथ ही कब्ज होने से भोजन पेट एवं आंतों में सडता रहता है जिसके कारण अन्य समस्याएँ उत्पन्न होने लगती है।
1 लीटर | गौमूत्र (Cow Urine of Indiginious Breed) | 100 ग्राम | नीम के पत्ते (Azadirachta indica) |
100 ग्राम | मेथी (Fenugreek) | 50 ग्राम | तुलसी |
25 ग्राम | काली मिर्च पाउडर (Black paper) | 25 ग्राम | तंबाकू (Tobacco) |
50 ग्राम | नमक | 25 ग्राम | अजवाइन (Carom Seeds) |
25 ग्राम | फिटकरी (Alum) | 50 ग्राम | अरंडी के तेल (Castor Oil) |
50 ग्राम | लहसुन | 100 ग्राम | करंज (Pongamia pinnata) |
50 ग्राम | सोंठ (Dry ginger) | 15 ग्राम | हींग (Asafoetida) |
50 ग्राम | ग्वारपाठा (Aloevera) | 25 ग्राम | हल्दी |
50 ग्राम | सीताफल के पत्ते Sugar-apple leaves | 25 ग्राम | बायबिरंग (Embelia ribes) |
25 ग्राम | महासुदर्शन चूर्ण | 50 ग्राम | इंद्रजव (Holarrhena Pubescens) |
25 ग्राम | काली जीरी (Centratherum Anthelminticum) | 50 ग्राम | चिरायता Andrographis paniculata |
50 ग्राम | हरड़ (Terminalia chebula) |
उपरोक्त सामग्रियों से, अपने क्षेत्र में जितना हो सके उतने पदार्थों का उपयोग करें। पशुओं की संख्या के अनुसार सात दिनों की दवा एक साथ बनाए।
उपर्युक्त सभी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों को काट कूट कर या बारीक पीसकर गोमूत्र में डालकर अच्छी तरह उबाले। ठंडा होने पर तैयार मिश्रण को छानकर स्टील, मिट्टी या कांच के बर्तन में रख ले।
इस दवा का उपयोग 15 दिनों तक किया जा सकता है।
इन सभी को मिलाकर, उबालकर, दूध या मट्ठा मिलाकर दिन में 2 बार, बड़े पशु को 2 लीटर तक और दूध न पीते बडे बच्चों को 1 लीटर तक पिलाए।
दिन में पशु को, कच्चे-पक्के पपीते, गाजर, केला, टमाटर, खीरा, पालक, मीठा नीम, मेथी, आदि सब्जियाँ और फल काट के 15 दिन तक दिए जाने चाहिये। इससे उन्हें पौष्टिक आहार मिलेगा। कमजोरी और निर्बलता दूर होगी। इस राब को दूध या छाछ में भी बनाया जा सकता है। आटे से चार गुना अधिक तरल पदार्थ् जैसे पानी, दूध या छाछ इत्यादि लें। पानी आधा रह जाने तक उबालें, फिर ठंडा करें और मवेशियों को पिलाए। छोटे बच्चों को आधी मात्रा में दे।
सामान्य रूप से दिए जाने वाले सूखे और हरे चारे को देना बरकरार रखें। जब तक आप राब दे रहे हो तब तक पशु आहार या बांटे को कम या बंद कर सकते हो।
इस प्रक्रिया के दरमियान यदि पशु को दस्त या अन्य किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया देखने को मिले तो घबराए नहीं।