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कमजोर या अशक्त जानवर और लगातार खूंटे से बंधे रहने वाले पशुओं व्यायाम नहीं मिलने के कारण प्रसूति के समय दिक्कत आती है। प्रजनन अंगों का संचरण या संकुचन ठीक से नहीं होने के कारण पशु काफी बेचैन रहता है। कई बार बच्चा टेढ़ा हो जाने के कारण भी सामान्य डिलीवरी होने में दिक्कत आती है जिसके चलते इसलिए सिजेरियन डिलीवरी करवानी पड़ती है। इस वजह से जानवर को और भी परेशानियां सहन करनी पड़ती है। कई बार बच्चा गर्भ में ही मर जाता है।
250 ग्राम | देसी गाय के गोबर का ताजा रस | 50 ग्राम | अरंडी का तेल |
50 ग्राम | हरड़ चूर्ण | 50 ग्राम | सोंठ |
50 ग्राम | सर्पगंधा |
यदि प्रसव प्राकृतिक रूप से होने में दिक्कत आ रही हो तो उपरोक्त पदार्थ ऊंट काटकर गोबर के रस में मिलाकर 6 घंटों के अंतराल में तीन बार पिलाएं। इससे प्रसूति सामान्य रूप से होने में काफी सहायता प्राप्त होती है। यदि बच्चा गर्भ में मर भी गया हो तो भी उसे बाहर निकालने में मदद मिलेगी।
ऐसा करने से ज्यादातर प्रसव प्राकृतिक रूप से हो जाते हैं। यदि तीन बार पिलाने पर भी असर ना दिखें या गाय, भैंस या पशु बार-बार प्रेशर कर रहा हो या कमजोर हो तो ज्यादा से ज्यादा डेढ-दो घंटा राह देखिए और अनुभवी डॉक्टर को बुला कर, हाथ डलवा कर उचित प्रयास करें।
प्रसव के बाद तुरंत 20 लीटर गुनगुने पानी में सौ से डेढ़ सौ ग्राम गुड़ और 10 ग्राम हल्दी मिलाकर पीने के लिए डीजेए।
इसके के बाद पशु को ज्वार, मकाई, बाजरी के साथ थोड़ी मात्रा में तेल मिलाकर नमक, गुड, सुवादाना, धनिया, मेथी, अजवाइन, जीरा, सोंठ वगैरे का पाउडर डालकर पशुओं को पौष्टिक आहार दें। इसके अलावा जौ, ज्वार या मकई का घी और गुड में बनाया शीरा दे सकते है। एक महीने तक सोंठ, गुड़ और घी के छोटे लड्डू बनाकर खिलाएं। तिल के तेल से बना शीरा भी दें।
बच्चे को एक महीने के लिए दो थनों का दूध और अगले पांच महीनों के लिए एक थन का दूध पिलाए। इससे यह एक अच्छी गाय या बैल बनेगा। जन्म के बाद, मेली या जैर के गिरने का इंतजार न करें। पहला स्तनपान बछड़े को बहुत ताकत देता है और साथ ही रोगप्रतिकारक शक्ति भी बढ़ाता है।
प्रसव हुए पशु को जाली वाले कमरे में अलग से रखें ताकि कुत्ता, कौआ, बिल्ली या अन्य जानवर जैर या अन्य निकला हुआ बिगाड पानी के लिए पशु को घायल न करे।
कभी-कभी प्रसव के बाद बच्चेदानी बाहर आ जाती है। सूजन आ जाती है। ऐसे मामलों में इस हिस्से को डेटॉल, पोटेशियम परमैंगनेट या फिटकरी के घोल से धोएं, अपने हाथ साबुन से हाथ धोकर, मोजे पहनें और हल्के हाथ से योनि को अंदर के तरफ धक्का दें। हो सके तो गोमूत्र में थोड़ा नमक और सोंठ डालकर गर्म करें और इसे कपड़े से योनि पर सिकाई करें। फिर डेटॉल से हल्के से धोएं और साफ हाथों से अंदर डालें। कुछ देर दबाकर रखें। इंफेक्शन ना लगे उसका ध्यान रखें। इनकी बैठने की जगह साफ-सुथरी एवं जंतु मुक्त रखें। मक्खियों या मच्छरों या पक्षियों और कुत्तों से बचाएं। पंखे की सुविधा करे।