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अत्यधिक एक ही प्रकार का हरा, बांसी, फंगस या लील वाला घास चारा खाने और गंदे नाले, कीचड़ या तालाब का कीटाणु युक्त पानी पीने से, जानवरों को एक ही जगह पर खूंटे से बांध के रखने पर घूमना फिरना बंद हो जाता है जिससे भोजन पचता नहीं है। इससे कब्ज और मंदाग्नि जैसी बीमारियां होती हैं। पशु गोबर करना बंद कर देता है। जानवर बेचैनी महसूस करता है। भोजन लंबे समय तक आंतों में पडा रहकर सडन पैडा करता है जिससे आंटो की बीमारियां पैदा होती है। जानवर आलसी की तरह बेचैन होकर पड़ा रहता है। मंदाग्नि के कारण कई अन्य बीमारियां भी होती हैं। दूध का उत्पादन घट जाता है।
500 ग्राम | गौमूत्र (Cow Urine of Indiginious Breed) | 50 ग्राम | हरड़ |
50 ग्राम | मेथी दाना | 25 ग्राम | अजवाइन |
25 ग्राम | सर्पगंधा | 25 ग्राम | लहसुन |
25 ग्राम | बायविडंग | 25 ग्राम | गूगल |
25 ग्राम | सोंठ या 100 ग्राम अदरक | 50 ग्राम | देसी गुड |
25 ग्राम | देसी अरंड का तेल | 25 ग्राम | पीपला मूल |
25 ग्राम | सेंधा या समुद्री नमक | 25 ग्राम | सुवादाना |
25 ग्राम | सौंफ | ||
50 ग्राम | सोना बाई कार्ब |
उपरोक्त सामग्रियों से, अपने क्षेत्र में जितना हो सके उतने पदार्थों का उपयोग करें।
उपरोक्त आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों को काट कूट कर तथा बारीक पीसकर गोमूत्र में डालकर अच्छी तरह उबाले। ठंडा होने पर तैयार मिश्रण को छानकर स्टील, मिट्टी या कांच के बर्तन में रख ले।
इस दवा का उपयोग 15 दिनों तक किया जा सकता है।
बड़े जानवरों को 150 ग्राम औषधि, 300 ग्राम पानी मे डालकर और छोडे बच्चो को 100 ग्राम औषधी को 300 ग्राम पानी के साथ दिन में दो या तीन बार एक सप्ताह तक देते हैं।
गौमूत्र सारक, रेचक और पाचक है। जिस से भोजन का ठीक से पाचन होगा। कब्ज दूर करता है और आंतों को क्रियाशील बनाता है। उपरोक्त अन्य आयुर्वेदिक जड़ी बूटी भी मंदाग्नि को खत्म करके पाचन तंत्र को सक्रिय और शक्तिशाली बनाएगी।