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जब गाय, भैंस, बकरी या कोई अन्य दुधारू पशु बीमार हो जाते हैं, तो कुछ पशु चिकित्सक उन्हें एलोपैथी की गोलियां या इंजेक्शन देते हैं। गोलियों अथवा इंजेक्शन की दवा की कुछ मात्रा पशु के खून में मिल जाती है। इसी खून से दूध बनता है। रक्त की विषाक्तता दूध में मिल जाती है। जब मनुष्य ऐसा दूध पीता है तो उसमें एलोपैथी दवा के काफी अंश होते हैं। इस तरह जाने अनजाने मनुष्य कई रोगों का भोगी बन जाता है।
आजकल किसान या पशु पालक ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ या राजका जैसे घास इत्यादि जो चारे की फसलें उगातें हैं, उन पर वें (किसान) अत्याधिक मात्रा में जहरीले कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं। साथ ही केमिकल युक्त जहरीले रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते हैं। इस तरह की ज़हरीली घास खाने से यें जहरीले कीटनाशक और रासायनिक खाद जानवरों के पेट में चले जाते हैं। विषाक्त पदार्थ रक्त में और अंततः दूध में आते हैं। ऐसे दूध पीने वाले मनुष्यों को भी बीमारियों से पीड़ित होना पड़ता हैं।
नवीनतम शोध के अनुसार, विषाक्त दूध पीने वाली माता के दूध में 21% केमिकल युक्त जहरीले अंश पाए गए है। यह उन बच्चों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है जो स्तनपान कर रहे हैं।
यदि जहरीली घास खाने वाली गाय, भैंस या पशु को गंभीर बीमारियाँ होती हैं तो वे जहरीली घास खाकर दूध देने वाली गायों तथा भैंसों का दूध पीने से इंसानों को कितना नुकसान होता होगा? इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
गाय या भैंस जैसे दूध देने वाले पशुओं को त्वचा रोग, कैंसर, एन्थ्रेक्स, मेड काउ डिसिस, ब्रुसेलोसिस, मलेरिया, डायरियाँ जैसी कई बीमारियाँ होती है। ऐसे रोग्रस्त पशुओं द्वारा नहर, नदी या तालाब में नहाते अथवा पानी पीते समय, उनके रोग के कीटाणु पानी में मिल जाते हैं, जिससे जल प्रदूषित होता है और इस तरह का पानी पीने से इंसानों में जानवरों की बीमारियाँ फैल जाती हैं। जानवरों के कुछ संक्रामक रोगों के कीटाणु हवा में मिल जाते हैं। ऐसी संक्रमित हवा से मनुष्यों में भी पशुओं का संक्रमण फैलता है। मनुष्यों में पशु-रोग स्पर्श, हवा, पानी एवं दूषित-दूध द्वारा फैलता है।
जिस देश में दूध देने वाले गाय, भैंस या पशु बीमार रहते हैं उस देश के नागरिक भी गंभीर बीमारियों से पीड़ित रहती है। “पशुओं का स्वस्थ रहना समग्र मानव जाति के हित में है”। इस हेतु-पशु स्वस्थ तो लोग स्वस्थ।
पशुओं के स्वास्थ्य की चिंता करना, इनका रक्षण करना, मानव जाति के लिये मंगलकारी है और कल्याणप्रद है। पशुओं को रोग मुक्त रखना हमारा स्वार्थ और परमार्थ दोनों हैं। मनुष्यों का स्वास्थ्य, पशुओं के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।