Curriculum
१.२ गोशालाओं का संचालन एवं प्रबंधन : –
गायत्री परिजनों द्वारा तीन प्रकार की गोशालाएं संचालित करने का प्रावधान है-
(१) सार्वजनिक गोशालाएं
(२) व्यक्तिगत सामूहिक गोशालाएं।
(३) व्यक्तिगत गोशालाएं,
(१) सार्वजनिक गोशालाएं:-
सार्वजनिक गोशालाएं जनता के अंशदान, समयदान, श्रमदान तथा उनकी सहभागिता से चलाई जाने वाली गोशालाएं हैं। चूँकि मिशन नीतिगत रूप से सरकारी धन स्वीकार नहीं करता, अतः मिशन द्वारा संचालित गोशालाओं में सरकारी धन लेने का प्रावधान नहीं है। इन गोशालाओं में जनता द्वारा गोदान में दिए गये गोवंश (कार्य योग्य अथवा अयोग्य, दूध देने योग्य अथवा अयोग्य) के लालन-पालन की व्यवस्था होती है।
उपरोक्त सामाजिक कार्यक्रमों का संचालन इन गोशालाओं का दायित्व है। ऐसी गोशालाएं गायत्री परिवार ट्रस्ट/ गायत्री परिवार रचनात्मक ट्रस्टों के अधीन संचालित की जाती हैं। इन गोशालाओं के आन्तरिक .संचालन की व्यवस्था ‘राष्ट्र के अर्थतंत्र का मेरुदण्ड गोशाला’ के अध्याय ४ में दी गई है, जिसमें स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार आंशिक संशोधन किया जा सकता है।
(२) व्यक्तिगत सामूहिक / व्यक्तिगत गोशालाएं:-
ये गोशालाएं व्यक्तिगत स्वावलम्बन के लिए निजी संसाधनों से स्थापित एवं संचालित की जाने वाली गोशालाएं हैं। कार्यकर्ताओं एवं बेरोजगार युवाओं को ग्रामीण क्षेत्र में गोपालन के माध्यम से स्वावलम्बन उपलब्ध कराने की अपार संभावनाएं हैं। ‘युवाओं को संस्कार व स्वावलम्बन’ मिशन का महत्वपूर्ण अभियान है। अत: मिशन के परिजनों द्वारा अपने मार्गदर्शन में स्वरोजगार के लिए स्थापित कराई जाने वाली गोशालाओं को कॉमर्शियल मिशनरी प्रोजेक्ट (COMP-स्वार्थ व परमार्थ का समन्वय) के रूप में विकसित किया जाना चाहिए ताकि व्यक्तिगत स्वावलम्बन के साथ-साथ सामाजिक कार्यों के लिए भी ये उतनी ही उपयोगी हो सकें। ऐसी गोशालाओं की स्थापना मिशन के स्वावलम्बन आन्दोलन का अंग है। इन गोशालाओं के संचालन में निम्र बिन्दुओं पर विशेष ध्यान दिया जाना है
(i) एकाकी व्यक्तिगत संचालन के स्थान पर ‘सामूहिक संचालन व प्रबंधन’ को वरीयता दी जाए। प्रयास यह किया जाए कि स्वरोजगार की व्यक्तिगत गोशालाएं सहकारिता के आधार पर चलाई जाएं।
(ii) ये गोशालाएं समाज से किसी भी प्रकार का दान/ अंशदान स्वीकार न करें, परन्तु लोकसेवा के कार्य गोशाला में जोड़े जाएं। अर्थात् वे समाज से लें तो कुछ नहीं, पर यथा सम्भव दें अधिकाधिक इससे उनकी प्रामाणिकता व लोकोपयोगिता दोनों ही बढ़ेगी।
(iii) इन गोशालाओं को भी उपरोक्त कार्यक्रम अपनी सामर्थ्यानुसार यथासंभव अपनी गतिविधियों में जोड़ने चाहिए। लोकसेवा के न्यूनतम दो कार्यक्रम तो अवश्य ही संचालित करने चाहिए। निःशुल्क प्रशिक्षण व्यवस्था तथा एक दो अच्छी नस्ल के सांड गोशाला में रखकर उनसे नस्ल सुधार के लिए क्षेत्रीय लोगों को निःशुल्क सेवा प्रदान करना।